कोरोना मरीजों के अब तक हुए एक्स-रे जांच में पाया है कि उनके फेफड़ों में इंफेक्शन हुआ और फिर निमोनिया डेवलप होता रहा। जिससे फेफड़े लगातार डैमेज होते रहते हैं। फेफड़ों के कमजोर होने से सांस की तकलीफ लगातार बढ़ती है और मरीज गंभीर स्थिति में चला जाता है। इसे रिकवर करने के लिए ऑक्सीजन व एंटीबायोटिक दी जाती है लेकिन गंभीर मरीजों के रिकवर होने की संभावना अब तक कम ही रही है। सामान्य मरीजों में इलाज के बाद निमोनिया डेवलप नहीं होता और जल्दी रिकवर होने की स्थिति बनती है, जबकि संक्रमित गंभीर मरीजों में स्थिति उलट रहती है। उनमें निमोनिया डिवेलप होने के साथ ही फेफड़े कमजोर होने लगते हैं और सांस की तकलीफ लगातार बढ़ती है। कोरोना का वायरस कोशिकाओं को नष्ट करता है और खुद डेवेलप होता जाता है।
जान गवाने वाले ये चार मामले...
- जानसापुरा की 62 सालकी महिला का एक्स-रे करवाने पर उनके फेफड़े में निमोनिया पाया था जो कि तेजी से डेवलप होता गया। इससे उनकी मौत हो गई। कोरोना संक्रमण से मरने वाली यह उज्जैन की पहली महिला थी।
- दानी गेट की 55 साल की महिला में कोरोना वायरस इतनी जल्दी एक्टिव हुआ कि उसे सांस लेने की तकलीफ बढ़ती गई। इसी वजह से उसे माधवनगर हॉस्पिटल से आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज शिफ्ट किया था। जहां उसे आईसीयू में नहीं लिया और महिला ने एंबुलेंस में ही तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया।
- गोपाल मंदिर क्षेत्र की 52 साल की महिला के फेफड़ों में वायरस से निमोनिया डेवलप होना शुरु हो गया था। उसे सांस लेने में तकलीफ बढ़ी, ऑक्सीजन पर रखे जाने के बावजूद उसकी तबीयत बिगड़ती गई और मौत हो गई।
- नीलगंगा थाना प्रभारी को कोरोना वायरस का संक्रमण होने के बाद उनके फेफड़े इफेक्टेड होने लगे थे। उनमें निमोनिया लगातार डेवलप होता गया, इससे उनमें सांस लेने की तकलीफ बढ़ती गई और इंदौर के निजी अस्पताल में उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई।
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