सरकारी गेहूं खरीदी में इस साल हुई बंपर पैदावार ने बड़े किसानों के नाम पर कानून का धत्ता देकर अधिकतम तय रकबे से ज्यादा जमीन पर जाेत करने वाले जिले के 3 हजार किसानों के चेहरे सामने ला गए है। इन किसानों को अब उक्त रकबे के हिसाब से गेहूं बेचते ही ज्यादा रकबे में सिचाई होना प्रमाणित हो जाएगा।
यदि प्रशासन सख्ती दिखाए तो उक्त किसानों के पास तय रकबे से ज्यादा जमीन छीन सकता है। इसको लेकर प्रशासनिक महकमे में चर्चा भी है और सही भी है। यदि ऐसा हुआ तो बडे़ किसान के रूप में पहचाने जाने वाले इन किसानों को समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचना महंगा पड़ जाएगा। कानून उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाली जमीन के अलावा अन्य जमीन प्रशासन अपने कब्जे में ले सकता है। ज्ञात रहे जिले में ऐसे 3 हजार किसान सामने आए है।
इस साल खरीदी केंद्रों पर हो रही बंपर आवक को देख प्रशासन की नजर किसानों के उत्पादन पर पड़ी। रकबे के आधार पर जब किसानों को 500 से 1 हजार क्विंटल गेहूं बेचने की पात्रता पर नजर दौड़ाई तो कई बड़े किसानों की हकीकत सामने आ गई।
इसलिए बना था कानून
ग्रामीण क्षेत्रों में अमीरी गरीब की खाई और इसके कारण गरीबों के शोषण को ध्यान में रख केंद्र व राज्य सरकारों ने सीलिंग एक्ट (कृषि जोत अधिकतम सीमा अधिनियम) बनाया था। मप्र में यह 1960 में लागू किया गया। इसके जमीन के अधिकतम रकबे को तय कर इससे ज्यादा कृषि जोत वालों की जमीन प्रशासन ने अपने कब्जे में ले ली थी।
जांच कराकर नोटिस भेजेंगे
एसडीएम एस.एल. सोलंकी के मुताबिक वैसे सीलिंग एक्ट का गेहूं खरीदी से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन यदि वाकई सीलिंग एक्ट के तहत निर्धारित अधिकतम कृषि जोत से भी ज्यादा जमीन किसी के पास है, तो उनके खसरे-रकबे की जांच कराएंगे। जांच में यदि कानूनी अधिकार से ज्यादा जमीन होना पाया गया। तो नोटिस देकर आगे की कार्रवाई करेंगे।
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