जिले के मजदूर अन्य प्रदेशों में फंसे हुए हैं, जिनको बस इंतजार है तो अपनी घर वापसी का। फिलहाल ये संभावना भी उनको नजर आती नहीं दिख रही। लॉकडाउन से कामकाज तो बंद है ही साथ ही इनको खाने का इंतजाम भी नहीं हो पा रहा। आर्थिक संकट ऐसा ही कि खुद का इलाज कराने तक के पैसे नहीं बचे हैं। हालांकि रेड क्रांस की ओर से 478 मजदूरों के खाते में 4 लाख 78 हजार रुपए डाले जाने की बात कही गई है लेकिन जिन हाल में ये जी रहे हैं उसमें 1 हजार रुपए में खर्च किसी भी हाल में नहीं चल पाएगा। ऐसे ही दो मजदूर जो राजस्थान और गुजरात में फंसे हैं उनसे जब भास्कर ने बात की तो उन्होंने अपना आपबीती सुनाई।
दवा इतनी जरूरी नहीं बस भगवान मुझे घर पहुंचा दे
हरियाणा के गुडगांव में छ:घरा कॉलोनी अरविंद विश्वकर्मा फंसे हैं जो 3 महीने पहले मजदूरी करने गुडगांव गए थे और एक रेस्टोरेंट पर समोसे बनाने का काम करते थे। अरविंद बताता है लॉकडाउन के बाद सेठ जी ने रेस्टोरेंट पर ही रहने की व्यवस्था की है, खाने का सामान तो मिल रहा है लेकिन रुपए बिल्कुल भी नहीं बचे। मेरे लीवर में सूजन है, इलाज कराने तक रुपए नहीं हैं। जहां रहता हूं वहां से 15 किमी दूर सरकारी अस्पताल है, लेकिन रास्ते में पुलिस लगी है। मुझे दवा की नहीं अपने घर वापस लौटने का इंतजार है। भगवान से बस एक की इच्छा है कैसे भी घर पहुंचा दे। परिवार से फोन पर बात होती है, तो उनको कहता हूं सब ठीक है ताकि उनको टेंशन न हो।
रोटी और चावल खाकर कट रहे दिन, घर वापस आने की अनुमति का इंतजार
छ:घरा कॉलोनी निवासी गोपाल सिंह अपनी पत्नी प्रयागबाई के साथ जयपुर राजस्थान के दादी फाटक पर रहते हैं जो पांच महीने पहले वे अशोकनगेर से बेलदारी करने गए थे। गोपाल बताते हैं कि हमें तो अशोकनगर बुला लो। यहां सुबह 3 रोटी, सब्जी और शाम को सिर्फ चावल खा रहे हैं । 181 पर खाने के लिए शिकायत की तो बोलते हैं जब तुम्हारा नम्बर आएगा तब मिलेगा। एक सप्ताह से अशोकनगर वापस आने के लिए हर दिन अधिकारियों से मिल रहा हूं। थाने जा रहा हूं, बस
एक ही बात बोल रहे हैं अनुमति आएगी तब जा पाओगे।
घर वापस आने में ई पास न मिलना एक बड़ी परेशानी
दहीसर इस्ट बाम्बे में दिनेश सोनी फंसे हुए हैं जो डायमंड फेक्टरी में स्टोर कीपर हैं। पिछले 12 साल से यहां काम कर रहे हैं, जो 3 मार्च को बाम्बे गए थे। वापस आना चाहते हैं लेकिन ई पास ही नहीं मिल पा रहा। कई बार इसके लिए प्रयास कर चुके हैं। साथ ही संबंधित थानों में भी अपनी जानकारी दे चुके हैं। जो फैक्टरी के खाली कमरे में अन्य लोगों के साथ रहने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि कही आना जाना ही नहीं हो पा रहा।
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