
शहर के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों की ऑनलाइन क्लासेस के बाद स्कूल फीस और अब कोर्स के नाम पर अभिभावकों की जेब हल्की करना शुरू कर दी। स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई की शुरुआत होने के साथ स्टेशनरी की दुकानों पर मनमाने तरीके से कोर्स बेचा जा रहा है, ताकि स्कूल प्रबंधन बच्चों को घर पर ही रहकर पढ़ा सकें। अभिभावकों की इसी मजबूरी में यहीं से कमीशन का खेल शुरू हो गया। छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों के कोर्स की लेसन बुक, काॅपियों के साथ दुकानदार ने डिक्शनरी, कलर बाॅक्स, स्टीकर शीट जैसी गैर जरूरी करीब 6 सामग्रियों का सेट बना दिया। इससे 2600 रुपए कीमत के कक्षा तीसरी के कोर्स का दाम 3351 रुपए तक पहुंच गया। मोटी राशि का बिल हाथों में आने के बाद जब अभिभावकों ने सवाल खड़े किए तो पूरा मामला उजागर हो गया।
कोरोना संक्रमण के बीच बच्चों को पढ़ाने की मजबूरी में अभिभावकों पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। 26 जून से निजी स्कूलों ने शहर की अलग-अलग स्टेशनरी दुकानों पर अपने स्कूलों के कोर्स की बिक्री शुरू करा दी। इसके पहले इन स्कूल प्रबंधनों ने सोशल मीडिया पर बनाए ग्रुप के माध्यम से अभिभावकों को कोर्स खरीदने के लिए सूचना भी दे दी। हालांकि जब अभिभावक किताबों की दुकान पर पहुंचे तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। एक बच्चे के पिता सुरेंद्र कटारे ने बताया कि वे अपने बच्चे का कोर्स लेने गए थे। कक्षा दूसरी के कोर्स सेट की कीमत 2600 रुपए बताई गई और तीसरी कक्षा के लिए 3351 रुपए। जब कोर्स चेक किया तो उसमें करीब 1000 से 800 रुपए कीमत का गैर जरूरी सामान रखा था।
निजी पब्लिशर की किताबें
निजी स्कूल और स्टेशनरी दुकान संचालकों की मनमानी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कूलों का समय तय नहीं होने के बाद भी स्कूलों के कोर्स बाजार में पहुंच गए। इतना ही नहीं स्कूलों की कक्षा आठ से छोटी कक्षाओं में निजी पब्लिशरों की किताबें ही कोर्स में शामिल की गई। इनकी कीमतें 120 से 350 रुपए तक है। इसके अलावा ब्रांडेड स्कूलों में कॉपियां भी ब्रांडेड कंपनियों की ही रखी गई। नतीजतन कारण कोर्स की कीमत बढ़ गई।
ऐसे होता है कमीशन का खेल
एक निजी स्कूल संचालक ने बताया कि प्राइवेट पब्लिशर स्कूलों को उनकी किताबें चलाने के लिए 30-50 प्रतिशत तक कमीशन देते हैं। इसके बाद स्कूल संचालक शहर के किसी एक या दो स्टेशनरी संचालक को सेट कर लेता है। इस तरह पब्लिशर और दुकानदार दोनों से स्कूलों का अलग अलग कमीशन पक्का हो जाता है। अगर 2700 रुपए की किताब है तो इस पर करीब 810 रुपए स्कूल के खाते में जाते हैं। छात्र संख्या के हिसाब से स्कूलों को एकमुश्त राशि दे दी जाती है।
माध्यमिक शिक्षा मंडल या एनसीईआरटी की किताबें नहीं चला रहे
अभिभावकों के हक में अभियान चलाने वाले रोहित सोनी ने बताते हैं कि छोटी कक्षाओं में एनसीईआरटी की किताबें नहीं पढ़ाई जा रही। कई स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों के साथ प्राइवेट पब्लिशर की किताबें लगाई जा रही हैं। माशिमं या एनसीआरटी की किताबें कोर्स में शामिल करने से बच्चों के बस्ते का बोझ भी कम होगा साथ ही अभिभावकों पर आर्थिक बोझ भी नहीं बढ़ेगा।
इधर, शिक्षा विभाग को शिकायत का इंतजार : स्कूल और स्टेशनरी दुकान संचालकों की मनमानी को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों का भी रवैया उदासीन बना हुआ है। जिला शिक्षा अधिकारी इस मामले में कार्रवाई के लिए अभिभावकों से शिकायत मिलने का इंतजार कर रहे हैं। डीईओ यू.यू. भिड़े ने बताया कि पेरेंट्स की शिकायत मिलेगी तो निश्चित रूप से कार्रवाई करेंगे।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2CVUEU0
No comments:
Post a Comment