सशस्त्र बलाें में महिलाओं की कम संख्या के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक अदृश्य मुद्दे उत्तरदायी है। पुरुष वर्चस्व एवं पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं काे सेना में अनुकूल वातावरण बनाने में बाधक है। विश्वस्तर पर अधिकारियाें अाैर सैनिकाें के रूप में महिलाओं की भूमिका के लिए प्रयास किए गए हैं। लेकिन काम्बेटू यूनिट में महिलाअाें काे स्थान नहीं मिल पाया है। सामाजिक एवं पारिवारिक दबाव, शारीरिक व मानसिक रूप से कमजाेर मानने की पुरुष मानसिकता सेना में महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ करने में सबसे बड़ी चुनाैती है।
यह बात डाॅ. बीआर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विवि में मंगलवार काे सेना में महिलाओं की बढ़ती संख्या के मायने विषय पर आयाेजित व्याख्यान काे संबाेधित करते हुए मुख्य वक्ता ले.जनरल दुष्यंत सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि दूर-दराज के क्षेत्राें में पाेस्टिंग, असुरक्षित वातावरण, अपर्याप्त अनुभव जैसी समस्याओं का समाधान करना हाेगा। जेंडर संवेदनशीलता के साथ स्वस्थ परिवेश एवं जेंडर साैहार्द की आवश्यकता है। अध्यक्षीय संबाेधन देते हुए कुलपति प्राे. अाशा शुक्ला ने कहा कि शाैर्य और शारीरिक मापदंडाें के कारण महिलाओं काे सेना के क्षेत्र में उचित स्थान नहीं मिल पाया है। समाज के दाेहरे मापदंड व स्त्री-पुरुष के प्रकृति प्रदत्त गुण-दाेषाें की कथित मानसिकता के कारण इस क्षेत्र में महिलाओं की सशक्त भूमिका के सामने चुनाैती है। उन्हाेंने कहा कि सेना द्वारा संचालित पाठ्यक्रमाें में जेंडर संवेदनशीलता के विषयाें काे सम्मिलित किया जाना चाहिए। जिससे इसमें जुड़ी कमजाेरियाें काे दूर करते हुए भारतीय सेना काे और अधिक सशक्त बनाया जा सके। धीरे-धीरे वैचारिक चिंतन के द्वारा सामाजिक परिवर्तन दिखाई देगा। प्राे. डीके वर्मा ने भी कार्यक्रम काे संबाेधित किया। संचालन व अाभार प्राे. किशाेर जाॅन ने माना।
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