Sunday, August 16, 2020

जब संसद में अटलजी के बारे में पंडित जवाहर लाल नेहरूजी ने कहा था- 'मैं इस युवक में भारत का भविष्य देख रहा हूं'

वर्तमान भारतीय राजनीति में सत्ता या विपक्ष में रहते हुये जन श्रद्धा का केन्द्र बने रहना उतना ही दुष्कर है जितना कि आज भी चांद पर पहुंचना। अटल बिहारी वाजपेयी 12 साल से बिस्तर पर रहे, पर कोई दिन ऐसा नहीं गया होगा जब उनकी चर्चाएं करोड़ो घरों में नित नहीं होती रही होंगी। आजादी के पहले के नेताओं द्वारा समाज की जो कल्पना हुआ करती थी उसे बनाये रखने का काम जो अटल जी ने किया वो आज से पहले देश के किसी भी नेता ने नहीं किया।


मैं इस युवक में भारत का भविष्य देख रहा हूं
संसद में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समक्ष संसद में अपनी वाणी से सदन के सदस्यों के दिल को स्पंदित करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी के बारे में नेहरू जी ने कहा था कि 'मैं इस युवक में भारत का भविष्य देख रहा हूं' सच में नेहरू जी ने उन्हे जो कुछ देखा उसे अटल जी ने अपने कर्म से उस ऊंचाई तक पहुंच कर जनता के सपनों को साकार किया। अटल जी भारत के वो व्यक्तित्व रहे जो विपक्ष में रहते हुये भी देश उनके बारे में यह सोचता रहा कि आज नहीं कल यह व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। राजनीति में जनता यदि नेता के बारे में सोचने लगे कि सच में इस व्यक्ति को प्रधानमंत्री होना चाहिये तो उस व्यक्ति का जीवन स्वयं सार्थक हो जाता है। अटल जी ऐसे ही सख्स थे। अटल जी नैसार्गिक रूप से नेता बने। नेता बनने के लिये उन्होंने कभी कोई जोड़ तोड़ नहीं की।

हम ग्वालियर के लोग
हम ग्वालियर के लोग अटल जी को बहुत करीब से जानते रहे हैं। हम उनके पासन भी नहीं हैं, पर ग्वालियर के होने के नाते स्वतः हमें गर्व महसूस होता है कि हम उस ग्वालियर के हैं, जहां अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सख्स पैदा हुये।

देश इंतजार करता था
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कभी अपने बारे में नहीं सोचा, वे सदैव देश के बारे में सोचते रहे। आजादी के बाद के सात दशकों के वे ऐसे आखिरी नेता रहे जिनके बारे में हर नागरिक कहीं न कहीं श्रद्धा भाव रखता रहा। वे भारत के आखिरी ऐसे नेता रहे जिनको सुनने के लिये लोग अपने आप आते थे लोगो को लाने का कोई प्रयत्न नहीं करना पड़ता था। भारत की वर्षों की राजनीति में अपनी वाणी से भारत के ही नहीं विश्व के लोगों के मन में अपना घर बना लेना सामान्य बात नहीं है। उनकी वाणी का महत्व इसलिये बना क्योंकि उनकी वाणी और चरित्र में दूरी नहीं हुआ करती थी। वो जैसा बोलते थे वैसी ही जिन्दगी जीते थे। ‘‘अटल जी क्या बोलेंगे’’ इस पर देश इंतजार करता था। यदि किसी व्यक्ति की वाणी का देश की जनता सुनने का इंतजार करे, सच में वो व्यक्तित्व अजेय होता है। अगर हम उन्हे वरद(सरस्वती) पुत्र कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। अपने लिये तो सब जीते है, देश के लिये हर पल जीने वाले व्यक्ति बहुत कम होते है।

जन गण मन को जीतते रहे
'नेता' शब्द का जब सृष्टि में निर्माण हुआ होगा, उस समय जो कल्पना की गई होगी उसका यदि भारत की जमीन पर शत-प्रतिशत उतारने का और अपने जीवन शैली से जिसने जीने की कोशिश की उस व्यक्ति का नाम अटल बिहारी वाजपेयी है। वो देश के जन गण मन को जीतते रहे। उन्होने भारत की राजनीति में एक एैसी लकीर खींची कि यदि आप भारत माता की सेवा करना चाहते है तो सिर्फ सत्ता में रहकर ही नहीं बल्कि विपक्ष में रहकर भी एक राष्ट्र के प्रहरी के रूप में कर सकतेे हैं। विपक्ष में रहकर भारतीय मन मानस में श्रद्धा की फसल उगाना सामान्य घटना नहीं है।

दूसरे दलों को प्रतिद्वंदी मानते थे विरोधी नहीं
अटल जी नैतिकता का नाम है। अटल जी प्रामाणिकता का नाम है। अटल जी, राजनैतिक सच का नाम है। अटल जी विरोधियों के मन को जीतने का नाम है। अटल जी विचार का नाम है। अटल जी प्रतिबद्धता का नाम है। अटल जी निराशा में आशा की किरण जगाने वाले व्यक्तित्व का नाम है। अटल जी देश की राजनीति में दूसरे दलों को प्रतिद्वंदी मानते थे विरोधी नहीं। अटल जी जब संसद सदस्य नहीं रहे तब भी निराश नहीं हुये और वे जब प्रधानमंत्री बने तब भी कभी भी वे बौराये नहीं। उनके जीवन में संतुलित सामाजिक व्यवहार ने देश में उनकी स्वीकार्यता बढ़ायी। अपने राष्ट्रीयता के व्यवहार से उन्होने संसद में वर्षों रहने के बाद सभी लोगों के मन मंदिर में बसे रहे।

गांव-गांव की अटल जी को याद कर रहीं है
दुनिया का सबसे कठिन काम होता है कि प्रतिद्वंदियों के मन में श्रद्धा उपजा लेना। वे भारत के अकेले ऐसे राजनीतिज्ञ रहे, जिन्होने विरोध में रहकर भी सत्ताधारियों के मन में श्रद्धा का भाव पैदा किया। ऐसे लोग धरा पर विरले होते हैं। तेरह दिन, तेरह महीने और उनके पांच साल के कार्य काल को कौन भूल सकता है। भारत में गांव गांव में बनी सड़कें आज भी अटल जी को याद कर रहीं है। कारगिल का युद्ध अटल जी की चट्टानी और फौलादी प्रवृति को भी उजागर करता है। परमाणु विस्पोट कर विश्व को स्तब्ध कर देने का अनूठा कार्य भारत में अगर किसी ने किया तो उस व्यक्ति का नाम है अटल बिहारी वाजपेयी। दल में आने वाली पीढ़ी का निर्माण और भारत में प्रतिभा शक्तियों को प्रतिष्ठित करने का अद्वितीय कार्य अटल जी ने किया। वे राजनीति के त्रिवेणी थे। वे पत्रकार रहे और राजनीतिज्ञ भी रहे। वे विचारों के टकराहट में कभी टूटे नहीं और कभी भूले नहीं कि मातृवंदना ही उनकी पूजा थी। राष्ट्रभाषा उनका जीवन था और समाज सेवा उनका कर्म रहा।

वे प्रतिभा को मरने नहीं देते थे
हम लोग सौभाग्यशाली रहे कि अटल जी के साथ हमें काम करने का सुनहरा अवसर मिला। वे जन्में जरूर ग्वालियर में थे, पर भारत का कोई कोना नहीं था जो उन पर गर्व नहीं करता था। कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने अपने अथक वैचारिक परिश्रम से अद्भुत पहचान बनाई थी। वे प्रतिभा को मरने नहीं देते थे, वे प्रतिभा को पलायन नहीं करने देते थे। वे आने वाले कल में वर्तमान को सजाकर और संवार कर रखने में विश्वास रखते थे। उन्होने कभी अपने को स्थापित करने के लिये वो कार्य नहीं किया जो राजनीति में टीका-टिप्पणी की ओर ले जाता हो। वे सच के हिमायती थे। उन्होने अपने जीवन को और सामाजिक जीवन को भी सच से जोड़कर रखा था। वो आजादी के बाद के पहले ऐसे नेता थे जिन पर जीवन के अंतिम सांस तक किसी ने कोई आरोप लगाने की हिम्मत नहीं की। सदन में एक बार उन्हे विरोधियों ने कह दिया कि अटल जी सत्ता के लोभी हैं, उस पर अटल जी ने संसद में कहा कि 'लोभ से उपजी सत्ता को मैं चिमटी से भी छूना पसंद नहीं करूंगा'।

जेल में भी उन्होंने साहित्य को जन्म दिया
सन 1975 में जब भारत में इंदिरा जी ने देश में आपातकाल लगाई तब भी उन्होंने जेल की सलाखों को स्वीकार किया। पर इंदिरा जी के सामने झुके नहीं। जेल में भी उन्होंने साहित्य को जन्म दिया। साहित्य लिखी। जनता पार्टी जब बनी तो उन पर और तत्कालीन जनसंघ पर दोहरी सदस्यता का आरोप लगा। तो उन्होने कहा कि, 'राष्ट्रीय स्वयं संघ में कोई सदस्य नहीं होता, वह हमारी मातृ संस्था है, हमने वहां देशभक्ति का पाठ पढ़ा है। इसीलिये दोहरी सदस्यता का सवाल ही नहीं उठता। हम जनता पार्टी छोड़ सकते हैं, पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ नहीं छोड़ सकते।' विचारधारा के प्रति समर्पण का ऐसा अनुपम उदाहरण बहुत ही कम देखने को मिलता है। वे शिक्षक पुत्र थे। संस्कार उन्हे उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता कृष्णा देवी से मिले थे।

विश्व के दस राजनीतिक स्टेट्समेन में से एक
देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी ने चीन युद्ध के बाद संसद में अटल जी के दिये भाषण को सराहा था। उनके इस भाषण को पूरे देश ने भी सराहा था। भारत पाकिस्तान से जब-जब युद्ध हुआ उन्होने तत्कालीन सत्ता को नीचे दिखाने के बजाये सत्ता के साथ भारत पुत्र होने का प्रमाण दिया। इनकी कार्य शैली के कायल थे स्वर्गीय प्रधानमंत्री नरसिंह राव। जिनेवा शिष्टमंडल में भारत के प्रतिपक्ष नेता के नाते जब भारतीय शिष्टमंडल को लेेकर पंहुचे थे तो विश्व आश्चर्यचकित था। इसका मूल कारण था कि अटल जी कि मातृभक्ति और राष्ट्रभक्ति पर किसी को अविश्वास नहीं था। विश्व के यदि दस राजनीतिक स्टेट्समेन का नाम लिया जाता है, तो उनमें से एक नाम है अटल बिहारी वाजपेयी जी का।

ढांचा गिरा तो वे व्यथित हुये

रामजन्म भूमि के आंदोलन में जब ढांचा गिरा तो वे व्यथित हुये, पर संसद में उन्होने कहा कि, ‘‘मैं ढांचे गिराने का पक्षधर नहीं हूं। लेकिन प्रधानमंत्री नंरसिंह राव जी आप देश को यह तो बताइये कि यह परिस्थिति पैदा क्यों हुई। कारसेवकों का धैर्य क्यों टूटा? क्या इस परिस्थिति के निर्माण में सरकार की कोई भूमिका नहीं रही? मैं ढांचा गिराने के पक्ष में नहीं रहा। पर इस बात से सरकार कैसे बच सकती है कि आखिर ऐसी परिस्थिति निर्मित क्यों हुई? अटल जी बालकों से, कांपते हाथों वाले वृद्ध के मन में भी अपना स्थान सदा बनाते रहे। अटल जी से हम सभी की अनेक स्मृतियां जुड़ी हुई हैं और उनमें हर स्मृतियां प्रेरणादायी रहेगी।

'ऐ मातृभूमि के मातृभक्त, पाकर तुमको हम धन्य हुये। ले पुनः जन्म तू एक बार, सत नमन तुझे है बार बार।।'

तूने था जो दीप जलाया, उसे न बुझने देंगे हम। उस बाती की पुंज प्रकाश से, जगमग जग कर देंगे हम।।

अटल जी एक युगदृष्टा थे। वे दीवार पर लिखे भविष्य की भी अनुभूति कर लेते थे। इसका एक सटीक उदाहरण है कि वे 6 अप्रैल 1980 को मुंबई स्थित माहिम के मैदान में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष होने के नाते जो अध्यक्षीय भाषण दिया था उसमें उन्होने कहा था,‘‘अन्धेरा छटेगा सूरज निकलेगा, और कमल खिलेगा’’।

आज अटल जी नहीं हैं, पर उनके बाद की पीढ़ीयों-वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते अमित शाह अटल जी के उपरोक्त वाक्य को सार्थक करते हुये भारत के हर राज्य में कमल खिलाने का काम कर रहेे हैं। अटल जी काया से हमें छोड़ गये, पर उनकी छाया से हमारा वैचारिक अनुष्ठान तब तक चलता रहेगा जब तक समाज के अंतिम व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान नहीं होगी।

  • लेखक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व राज्यसभा सांसद हैं।


Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
संसद में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समक्ष संसद में अपनी वाणी से सदन के सदस्यों के दिल को स्पंदित करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जी के बारे में नेहरू जी ने कहा था कि 'मैं इस युवक में भारत का भविष्य देख रहा हूं'


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3ax9Ymy

No comments:

Post a Comment

Kusal Perera ruled out of India series due to injury: Report

from The Indian Express https://ift.tt/3rf5BoA