3 नवंबर को उपचुनाव में मतदान से पहले यदि आपको किसी जरूरी काम से बाहर जाना है तो अभी यात्रा कर लें। ऐसा न करने पर अगले पांच दिन सवारी वाहन न मिलने से परेशानी होगी। इस बार चुनाव में पोलिंग पार्टियों के लिए अधिकतर वाहन रूट के लिए जाएंगे क्योंकि स्कूल-कॉलेज के अधिकतर वाहन चलने की स्थिति में नहीं है। ये 22 मार्च से पार्किंग में ही खड़े हैं। इस कारण इनकी बैटरी खराब हो चुकी हैं। प्रशासन 30 अक्टूबर से बसों का अधिग्रहण करेगा और इनकी मुक्ति 3 नवंबर को वोटिंग के बाद होगी।
प्रशासन को इस बार 144 बड़ीं बसें और 104 छोटी बसें चाहिए। अभी तक 80 फीसदी डिमांड स्कूल-कॉलेज बसों से पूरी होती रही है पर इस बार ऐसा नहीं हो सकेगा। स्कूल-कॉलेज बस यूनियन ने प्रशासन से साफ कर दिया है कि सात महीने से स्कूल-कॉलेज बंद हैं। इसलिए 90 फीसदी वाहनों की आज की स्थिति में बैटरी खराब हो चुकी हैं। दूसरा बस ऑपरेटरों ने चालक और क्लीनर को काम से निकाल दिया है।
इस स्थिति में अब केवल रूट वाली बसें ही प्रशासन की मदद करेंगी। चूंकि ये भी अभी 50 फीसदी से ज्यादा नहीं चल रही हैं, इसी कारण इनमें से भी आधी बसें तत्काल सड़क पर चलने जैसी स्थिति में नहीं है। बस ऑपरेटर बताते हैं कि इस बार कई रूटों पर पोलिंग पार्टी को बस बंद होने पर धक्का लगाने पड़ सकते हैं। कुछ ऑपरेटर इसलिए भी नाराज हैं कि उन्हें पिछले चुनाव का बस किराया अभी तक नहीं मिला है।
दूसरे जिलों से भी चाहिए बसें
चुनाव के लिए अंचल के दूसरे जिले भी ग्वालियर से बसों की मांग कर रहे हैं, क्योंकि वहां पर न तो स्कूल-कॉलेज वाहन हैं न रूट की बसें। इनकी संख्या सर्वाधिक ग्वालियर में ही है। मजबूरी में प्रशासन को प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के वाहन भी चुनाव के लिए अधिग्रहित करने होंगे।
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