सर्पासन में शरीर की आकृति सर्प के समान रहती है व नियमित अभ्यास से मेरुदण्ड और मांसपेशियों में लचीलापन आ जाता है, इसलिए आसन को सर्पासन कहा जाता है।
विधि-जमीन पर पेट के बल लेट जाएं। श्वांस को सामान्य रखते हुए शरीर सीधा रखें। सिर या ठुड्डी को जमीन पर स्पर्श करवाते हुए शरीर में श्वांस भरते हुए दोनों पैरों के पंजों को एक दूसरे में फंसा लें या पैरों के पंजों को सीधा रखते हुए दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर दोनों हाथों के पंजों को फंसा कर मुट्ठीनुमा आकृति बना लें। दृष्टि सामने रखते हुए दोनों हाथों को पीछे की ओर खींचते हुए सिर और वक्षस्थल को ऊपर उठाएं। दोनों पैरों को सीधा रखें या दोनों पैरों को साथ में जमीन से थोड़ा ऊपर उठाएं। आसन की मुद्रा में दोनों हाथों का पीछे की और खिंचाव होना चाहिए। यथास्थिति रुकने के बाद धीरे-धीरे श्वांस छोड़ते हुए सामान्य स्थिति में आ जाएं। हाथों व पैरों को भी सामान्य रखें। इस आसन को कम से कम 2 बार से 7 बार तक करें।
लाभ-संपूर्ण शरीर में नई चेतना व ऊर्जा का संचार होता है। फेफड़ों की कार्यक्षमता में बहुत वृद्धि होती है। शरीर को शुद्ध पर्याप्त ऑक्सीजन प्रवाह होता है जिससे अस्थमा के रोगियों को अद्भुत लाभ मिलता है। पेट की मांसपेशियों की मालिश होने के साथ उदर प्रदेश को बहुत लाभ मिलता है। कब्ज एसिडिटी दूर होती है। सभी अंग निरोगी होते हैं।
वक्षस्थल चौड़ा होने के साथ साथ मांसपेशियों की जकड़न दूर होती है। डायबिटीज, मोटापा के लिए लाभकारी आसन है।
उच्च रक्तचाप और ह्रदय रोगी अतिरिक्त परिश्रम कर नहीं करें।
आशा दुबे, जिला योग प्रभारी
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