लॉकडाउन के दौरान पोषण आहार की गड़बड़ी के आरोप में सस्पेंड हुईं दो अफसरों की सिर्फ इसलिए बहाली हो गई, क्योंकि सस्पेंड होने के 90 दिन के भीतर महिला एवं बाल विकास विभाग उन्हें चार्जशीट (आरोप-पत्र) जारी नहीं कर पाया।
इसके पीछे बड़ा कारण सामने आया कि चार्जशीट जारी करने से पहले अनुमोदन के लिए फाइल विभाग की मंत्री इमरती देवी के पास भेजी गई थी, जो 50 दिन बाद लौटी। तब तक 90 दिन का समय बीत गया। फाइल 29 अक्टूबर को मंत्री के पास भेजी गई थी, जो 18 दिसंबर को लौटी।
अब विभाग कह रहा है कि नए सिरे से कार्यवाही की जा सकती है। बता दें कि खंडवा की जिला कार्यक्रम अधिकारी अंशुबाला मसीह और खालवा की परियोजना अधिकारी हिमानी राठौर 16 सितंबर को सस्पेंड हुई थीं।
जिस दिन फाइल लौटी, उसी दिन स्पीड पोस्ट से भेजी गई चार्जशीट
इमरती देवी के अनुमोदन के बाद 18 दिसंबर को चार्जशीट की फाइल विभाग में लौटी। इसी दिन सस्पेंड अधिकारी बहाल हो गईं। जैसे ही प्रमुख सचिव ऑफिस में यह पता चला तो आनन-फानन में उप सचिव व आईएएस अधिकारी जगदीशचंद्र जटिया ने 18 दिसंबर को ही न केवल स्पीड पोस्ट से आरोप-पत्र भेजा, बल्कि खंडवा कलेक्टर अनय द्विवेदी को कहा गया कि इसकी तामील कराएं।
इसलिए निलंबित किया गया था
लॉकडाउन में निर्देश रहे कि आंगनबाड़ी केंद्र के हितग्राहियों 6 माह से 6 वर्ष तक के बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए, गर्भवती एवं धात्री माताओं व किशोरी बालिकाओं को कोरोना के दौरान कुपोषण से बचाने के लिए रेडी-टू-ईट पोषण आहार दिया जाना था।
बच्चों को एक किलो 200 ग्राम तथा गर्भवती-धात्री माताओं को डेढ़ किलो दिए जाने के निर्देश थे। जांच में पता चला कि खंडवा जिले के बलड़ी-किल्लोद, हरसूद एवं खालवा में यह 200 से 300 ग्राम ही पोषण आहार दिया गया। वितरण का डाटा भी नहीं रखा गया। फर्जीवाड़े का संदेह है। इसी आधार पर अंशुबाला मसीह और हिमानी राठौर को निलंबित किया गया था।
यह है नियम
मप्र सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण तथा अपील) नियम 1966 के नियम 9 (5) के तहत सस्पेंड होने के बाद 90 दिन में यदि चार्जशीट जारी नहीं होती तो निलंबन स्वत: ही खत्म हो जाता है। अफसर बहाल हो जाते हैं।
मंत्री बाेलीं- सीएम के पास थी फाइल; प्रमुख सचिव ने कहा- मंत्री काे भेजी थी
इस मामले में मंत्री के यहां से जब फाइल लौटी, तब तक 92 दिन हो चुके थे। इस बारे में जब इमरती से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह फाइल मेरे यहां नहीं, मुख्यमंत्री के यहां रुकी होगी। मैं इस मामले को नहीं देख रही हूं। विभाग के अधिकारी इस बारे में बता सकते हैं। वहीं, विभाग के प्रमुख सचिव अशोक शाह का कहना है कि अनुमोदन के लिए फाइल मंत्री को भेजी गई थी।
तय अवधि में आरोप-पत्र नहीं पहुंचा। नियमानुसार वो बहाल हुई हैं। उनका मुख्यालय इंदौर है। जहां तक चार्जशीट व निलंबन का सवाल है तो अब आगे शासन इसे देखेगा। इस बीच अंशुबाला मसीह ने खुद अपनी बहाली का ऑर्डर करके विभाग के प्रमुख सचिव को भेज दिया। इसमें उन्होंने सिविल सेवा आचरण नियम को आधार बनाया।
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