ओमप्रकाश सोनोवणे | उज्जैन .शहर में ब्राह्मणों के चार परिवारों में विजयादशमी पर रावण की भी पूजा होगी। रावण का विद्वान ब्राह्मण के रूप में वेदिक रीति से पूजन किया जाएगा। रामघाट के तीर्थ पुरोहित धर्माधिकारी नारायण उपाध्याय के परिवार में यह परंपरा है। भारद्वाज गोत्र के उनके चार घरों में यह पूजा होगी। पं. नारायण उपाध्याय के घर में 100 साल पुराना हाथ से बना चित्र भी है, जिसमें ऊपरी हिस्से में शिवजी हैं तथा नीचे रावण का चित्रण है।
पं. उपाध्याय के अनुसार चित्र में बताया है कि रावण शिवजी को हिमालय से लेकर आया था। इस चित्र को दशमी के दिन पूजा स्थल पर रखा जाता है। रावण की तरफ गोबर से बने कुल्हड़ों में शमी की पत्तियां और नवरात्रि में बोए गए जवारे डालकर पूजन किया जाता है। यह परंपरा वंशानुसार चली आ रही है।
मंदसौर : लोग रावण को जमाई मानते हैं, प्रतिमा के सामने से महिलाएं घूंघट डालकर निकलती हैं -मंदसौर| खानपुरा इलाके में नामदेव समाज मंदोदरी को बेटी और रावण को जमाई मानकर उनकी सालभर पूजा करते हैं। महिलाएं रावण की प्रतिमा के सामने से घूंघट लेकर निकलती हैं। मान्यता है कि तबीयत खराब होने और बुखार आने पर रावण की प्रतिमा के बाएं पैर में लच्छा बांधने पर लोग ठीक हो जाते हैं। संतान प्राप्ति के लिए भी लाेग रावण की पूजा करते हैं। दशहरे पर सुबह रावण प्रतिमा की पूजा होती है। शाम को प्रतीकात्मक वध किया जाता है। शहर में नामदेव समाज के करीब 300 परिवार रहते हैं, जो 41 फीट ऊंची रावण की प्रतिमा की पूजा करते हैं।
विदिशा : रावन गांव में ग्रामीण मांगते है खुशहाली की दुआ -विदिशा| यहां से 50 किमी दूर रावन गांव के लोग दशहरे पर रावण मंदिर में पूजा-अर्चना कर खुशहाली की दुआ मांगते हैं। मंदिर में 8 फीट लंबी लेटी हुई रावण की प्रतिमा है। पं. रमेश तिवारी ने बताया कि यहां के लोग रावण को इष्ट देवता मानते हैं। मंदिर में नव दंपती पूजा करने अाते हैं।
बैतूल : मन्नत पूरी होने पर मंदिर में चढ़ाते हैं पीतल, तांबे का घोड़ा -अक्षय जोशी. सारनी | बैतूल जिले के छतरपुर गांव में दशहरे पर रावण की पूजा की जाती है। यहां के आदिवासी रावण को भगवान मानते हुए पूजते हैं अौर उनके नाम की ज्योत जलाते हैं। छतरपुर में (राऊण देव) रावण बाबा की पहाड़ी है। यहां उनका मंदिर भी है। आदिवासी रावण को अपना इष्ट और कुल देवता मानते हुए पूजा करते हैं। गांव के सुनील सरियाम, रामदास वट्टी ने बताया गांव के लोग रावण के साथ मां दुर्गा की भी पूजा करते हैं। नवरात्रि में गांव में दुर्गा प्रतिमा भी स्थापित होती है। रावण, मेघनाद और महिषासुर आदिवासियों के कुल देवता हैं। कई पीढ़ियों से इनकी पूजा की जा रही है। यही कारण है दशहरे में इनके स्वरूप पुतले जलाना या इन्हें राक्षस कहने का अादिवासी समाज विरोध करता है। आदिवासियों के अनुसार राऊण देव के समक्ष मांगी मन्नतें पूरी होती हैं। राऊण देव के नाम के प्रतीकात्मक घुड़सवार समेत पीतल, तांबा और मिट्टी का घोड़ा चढ़ाया जाता है।
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