Wednesday, January 1, 2020

श्योपुर का गोरस गांव... हर घर में 50 से 200 गायें, राेज 35 हजार ली. दूध उत्पादन

नंदन शर्मा | श्योपुर .दूध में मिलावट के लिए चंबल संभाग के श्योपुर, मुरैना और भिंड जिले बदनाम हाे चुके हैं। लेकिन इसी श्योपुर जिले के जंगल में बसे एक गांव गोरस का दूध और मावा अपने आप में शुद्धता का ब्रांड है। इस विश्वास की वजह गुर्जर मारवाड़ी समाज की यह मान्यता है कि दूध के धंधे में मिलावट करने से पशुधन नहीं बढ़़ता है। वर्तमान में इस गांव में 22 हजार दुधारू पशु हैं, इनमें ज्यादातर गायें गिर नस्ल की हैं। रोजाना लगभग 35 हजार लीटर दूध बिकता है। गोरस से दूध श्योपुर व राजस्थान के कोटा, बारां व सवाई माधौपुर तक जा रहा है।

शासन स्तर पर इसे पहचान देने के लिए गोरस महोत्सव की भी शुरुआत की गई है। जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर शिवपुरी-पाली हाईवे पर सीप नदी के पास बसे इस गांव में 800 घर हैं। इनमें गुर्जर मारवाड़ी समाज के 250 परिवार गाय-भैंस पालते हैं। जबकि करीब 550 आदिवासी परिवार मेहनत से आजीविका चलाते हैं। हर परिवार के पास 50 से 200 गायें है। 25 पशुपालकों के पास निजी कार व पिकअप वैन हैं।

ग्रेजुएट कान्हा और कॉलेज जाने वाली ममता चराते हैं गाय

गोरस निवासी कान्हा गुर्जर बीए पास हैं, लेकिन आज भी गाय चराने और दूध बेचने का काम करते हैं। पिता हरलाल गुर्जर ने बताया कि घर में 80 गाय हैं। इसी गांव की ममता गुर्जर कॉलेज जाने वाली पहली बेटी है। पिता नंदाजी गुर्जर ने बताया कि वह इस साल श्योपुर कॉलेज से एमए का फार्म भरेगी। लेकिन इस सब के बीच वह गाय जरूर चराती है।

गोरस महोत्सव से बंधी थी आस, लेकिन परिणाम नहीं मिला
गुर्जर मारवाड़ी समाज ने दूध का उत्पादन कर अपने दम पर विकास किया है पर शासन से प्रोत्साहन नहीं मिला। गोरस महोत्सव की शुरुआत से तीन साल पूर्व आस बंधी थी, लेकिन मंत्री और विधायकों की उपस्थिति में सिर्फ बातें होकर रह गई। -बिशनीबाई, सरपंच ग्राम पंचायत गोरस



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गायाें के लिए चारा पानी का इंतजाम करती ग्रेजुएट ममता।


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