ग्राउंड रिपाेर्ट -1: चार गांवों से-मैं राहुल दुबे। खतरों के बीच पत्रकारिता धर्म निभा रहा हूं। क्योंकि मेरे परिवार के साथ भास्कर के लाखों पाठकों को
भी आज मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है।
कोरोना से निपटने के लिए नगर निगम शहर में सैनिटाइजर छिड़क रहा है। वहीं, पुलिस-प्रशासन को लोगों को घरों में रखने के लिए सख्ती करना पड़ रही है, जबकि शहर सीमा में शामिल गांवों में स्थिति उलट है। गांव वालों ने छिड़काव के लिए ना तो कंट्रोल रूम को कॉल किया न पुलिस को समझाइश देनेआना पड़ा। अपना गांव-अपना अनुशासन बनाकर ग्रामीणों ने खुद ही बचाव के इंतजाम कर लिए। सबसे पहले बाहरी लोगों का प्रवेश रोका। फिर देसी सैनिटाइजर बनाकर छिड़काव किया। पलायन करने वालों को भोजन के पैकेट बांट रहे हैं।
कैलोद करताल : 350 घरों में देसी सैनिटाइजर से छिड़काव
दोपहर में कैलोद करताल पहुंचा तो ग्रामीण अनिल पटेल और विकास ने रोक लिया। अड़ गए कि गांव में किसी को नहीं जाने देंगे। मैंने रिपोर्टिंग का बताया तो सबसे पहले देसी सैनिटाइजर से हाथ धुलवाए। सैनिटाइजर नीम की पत्तियों और एलोवेरा को पानी में उबालकर बनाया। गांव में गए तो देखा कि संजय शर्मा और रमेश ट्रैक्टर के जरिए गलियों में यही सैनिटाइजर छिड़क कर रहे हैं। रमेश तो हर घर में जाकर स्प्रे कर रहे हैं। जहां भी जाते बच्चों के हाथ धुलवाते। लाॅकडाउन का पूछा तो बोले गांव में रात आठ बजे बाद कोई भी घर सेे नहीं निकला। सुबह के काम भी नौ बजे तक पूरे हो जाते हैं। एक कोने में पत्ता गोभी, हरे प्याज, लौकी, पालक का ढेर दिखा। इंदौर की मंडियों में सब्जियों पर रोक है। इसलिएग्रामीणों ने आपूर्ति नहीं की। यह गांव भी निगम सीमा में शामिल है, लेकिन काम के लिए लोग निगम के भरोसे नहीं हैं। हर घर से दो जवान छिड़काव, सफाई में लग जाते हैं।
सनावदिया : जबसे कोरोना का हुआ संक्रमण, तब से डिस्पेंसरी ही नहीं खुली
देवगुराड़िया के पीछे सनावदिया में चार-पांच गांवों के बीच डिस्पेंसरी दिखी। यहां जाकर रुके तो ग्रामीण जगदीश रावलिया आए। बोले कि जबसे कोरोना का संक्रमण फैला, तब से यह डिस्पेंसरी भी बंद है। गांव में जांच करने के लिए कोई नहीं आया। पंचायत भी दो सप्ताह से बंद है। टीवी, अखबार से मिली सावधानियां पढ़कर ही हमने इंतजाम कर लिया। हम इंदौर से सैनिटाइजर लेकर आए और हर घर में पहुंचा दिया। वैसे भी गांव में सात बजे बाद सब घरों में चले जाते हैं। सुबह खेतों में गेहूं निकालने का चल रहा है। यह काम 10-10 फीट की दूरी बनाकर किया जा रहा है।
उमरिया : गांव में कोई नहीं, सब लोग रोज खेतों में क्वारेंटाइन हो जाते हैं
उमरिया पहुंचा तो ग्रामीण विष्णु मिले। बोले गांव में कोई नहीं मिलेगा। सब खेतों में क्वारेंटाइन हैं। खेतों से गेहूं और सब्जियां निकालने का काम चल रहा हैं। वहां इतनी दूर रहते हैं कि चिल्लाकर बात करना पड़ती है। दिन में एक बार खाना खाते समय ही गोला बनाकर बैठते हैं। हमारा सोशल डिस्टेंस तो बरसों से काम करते हुए बना रहता है। शहर में सख्ती है तो फार्म हाउस भी खाली हैं। गांव से होकर इनका रास्ता जाता है। हमने पानी में नीम, चमेली की पत्तियों को उबालकर छिड़काव कर दिया है। शहर में किसी को नहीं जाने दिया जा रहा है। इसलिए गांव वाले सब यहीं रह रहे हैं।
मिर्जापुर : रोड पर रखी कटीली झाड़ियां, लिख दिया- यहां आना मना है
मैं सुबह करीब 10 बजे खंडवा रोड स्थित मिर्जापुर पहुंचा तो गांव के रास्ते पर कटीली झाड़ियां और सूखे पेड़ों की टहनियोंने रास्ता रोक दिया। ग्रामीणों ने रोड पर चूने से बड़े अक्षरों में लिख दिया- यहां किसी भी शहरी व्यक्ति का आना मना है। गाड़ी रोककर कटीली झाड़ियां पार करके निकला तो गांव के युवा सफाई कर रहे थे। युवक मनीष ने बताया कि हम ही सुबह नालियों की सफाई कर रहे और झाड़ू लगा रहे हैं। गांव में फूलों की खेती होती है। इसलिए इंदौर से कई लोग आते हैं। अभी कोरोना का वायरस फैल रहा है। इसलिए गांव को पूरी तरह लाॅकडाउन कर दिया हैै। न कोई बाहर जाता है न आता है। एक जगह से सब्जियां पकाने की खुशबू आ रही थी। वहां पहुंचे तो पूरी, सब्जी और चावल भगोनों में भरे हुए थे। चूंकि गांव बायपास से लगा हुआ है और मजदूर यहीं से निकल रहे हैं। उन्हें यहीं से भोजन के पैकेट बनाकर दिए जा रहे हैं।
ग्राउंड रिपाेर्ट -2-बिचौली हप्सी से- मैं गौरव शर्मा। खतरों के बीच पत्रकारिता धर्म निभा रहा हूं। क्योंकि मेरे परिवार के साथ भास्कर के लाखों पाठकों को
भी आज मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है।
एक गांव के 15 से ज्यादा परिवारों के पास खाने का संकट, आटा-दाल खरीदने तक के पैसे नहीं
बायपास से लगा बिचौली हप्सी। गांव के अंदर गली में टीन का छोटा सा घर है। यह घर 80 वर्षीय बाबूलाल अौर बसंती बाई का है। इनका कोई बेटा नहीं है। पति की उम्र ज्यादा है इसलिए अब उनसे मजदूरी नहीं होती। बसंती बाई लोगों के घर जाकर बर्तन धोती हैं तब जाकर घर जैसे-तैसे चलता था। एक सप्ताह से सब काम बंद है। रोज राशन लाने वाले इस घर में अब आटा, दाल, चांवल, तेल अौर राशन खत्म हो चुका है। बसंती का कहना है घर में जो थोड़ा दलिया रखा था, वो हमने कर खा लिया। अब न रुपए है न खाने का सामान।
बसंती बाई ही नहीं, बल्कि इसी लाइन के 20 से ज्यादा परिवारों के सामने इस समय खुद को बीमारी से बचाने के साथ खाने का संकट आ खड़ा हुआ है। कमला बाई का कहना है घर के अनाज के डिब्बे खाली हैं। दूध तक खरीदने के पैसे नहीं। मैं लोगों के घर झाड़ू-पोछा करती हूं। बेटा मजदूरी करता है। दोनों का काम पूरी तरह से बंद है। पति दिव्यांग हैं, वे काम नहीं करते हैं। सुंदरी बाई का कहना है कि हालत खराब है। कोई उधारी भी नहीं देता, हम उधार लेने गए भी तो पहला सवाल उनका यही था कि चुकाओगे कैसे? अभी हमारी खुद की हालत खराब है।
इन सभी के बीच शाम को घर में चूल्हा जले, इसलिए ये लोग अलग-अलग खेत में गए। बसंती बाई अौर कमलाबाई ने कहा, एक खेत से हमें मूली अौर पालक दिया गया। अब इसे उबालकर खाएंगे। ये जब तक चलेगा, इसे ही खाएंगे। यही हमारा खाना है। वहीं, जिस परिवार में बसंती बाई काम करती थीं, उन्होंने उनको यह जानकारी दी। बाद में ऋषिका कोठारी ने उन्हें कहा हम मदद करेंगे। इसके बाद उन्होंने पुलिस-प्रशासन से संपर्क कर रात में आठ परिवारों तक फूड पैकेट भी पहुंचाए। ऋषिका ने कहा गांव के लोगों को जो राशन, रुपयों से लेकर अन्य जो चीजें चाहिए, हम उन्हें पहुंचाएगा।
फैक्टरी बंद, न किराया के पैसे न घर चलाने के लिए
गांव में रहने वाली ओमबाई ने कहा हम किराए से रहते हैं। पति गणेशराम फैक्टरी में काम करते हैं। उनका काम बंद हो चुका है। अब आगे हमारे पास खाने की व्यवस्था तक नहीं। ऊपर से किराया देना है सो अलग। आगे क्या होगा कुछ नहीं पता। लेकिन हकीकत यह है कि हमारे पास अगले दो
दिन के बाद खाने की व्यवस्था भी नहीं है। वहीं, मजदूरी करने वाली शगुनबाई और उनके पति देवकरण नेकहा केघर में बच्चे हैं। हमारे पास राशन तक की व्यवस्था नहीं है। सरकारआगे आए, हमारी मदद करे, क्योंकि 21 दिन का लॉकडाउन है। इतनेदिन हम बिना रुपयों और राशन के कैसे बिताएंगे? सरकार मदद करे।
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