बाढ़ की भीषण तबाही का मंजर चौथे दिन बाढ़ का पानी उतरने के बाद साफ नजर आया। जो मंजर बाढ़ प्रभावित गांव सातदेव, मंडी, सीलकंठ, छीपानेर, चोरसाखेड़ी में था। ठीक वैसे ही हालात नीलकंठ, छिदगांव काछी, चमेटी व मंझली में दिखाई दिए। तबाही के इस मंजर को देख ग्रामीण भी भविष्य की चिंता में डूबे हुए नजर आए। उनकी आंखों से झरते आंसू बर्बादी की दास्ता को बयां कर रहे थे। दैनिक भास्कर के रिपोर्टर ने जब पीड़ितों से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि बाढ़ की ऐसी स्थिति तो 1963, 1965 व 1973 के बाद अब हुई है। उस समय भी सबकुछ तबाह हो गया था।
चार दिनों तक नाव में आशियाना : नीलकंठ के पीडित सुरेश केवट ने बताया कि गांव का एक भी मकान बाढ़ से अछूता नहीं बचा है। गांव में जल स्तर 10 फीट के लगभग था। इन चार दिनों तक नाव को ही अपना आशियाना बनाए रखा। हालांकि प्रशासन ने चींच के हासे स्कूल में व्यवस्था की थी। लेकिन ग्रामीणों ने अपने डूबे हुए घरों को छोड़ना उचित नहीं समझा। इसी पंचायत के 950 की आबादी वाला चमेटी गांव भी प्रभावित हुआ है।
मंझली के ग्रामीणों ने पंचायत भवन में बिताई रात : मंझली गांव के 50 मकान पूरी डूबे हुए थे। यहां के ग्रामीणों को तिलाडिया पंचायत भवन में शरण दी। ग्रामीण नागेश दुबे, श्याम सुंदर जगदीश व अनसुईया बाई ने बताया कि बाढ़ ने हमें 5 साल पीछे कर दिया है। छिदगांव काछी में 85 मकान बाढ़ की चपेट में आए थे। यहां भी कुछ मकान अभी तक डूबे हुए नजर आए। इमलाड़ा गांव का हर घर बाढ़ की चपेट में आया था। ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ का पानी आने के बाद खेतों में जाकर रात गुजारी।
सात दिन तक किसी भी कर्मचारी को छुट्टी नहीं
एसडीएम डीएस तोमर का कहना है कि विकासखंड स्तर पर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तैनात अधिकारियों, राजस्व व पंचायत अमले को निर्देशित किया है कि अपने-अपने प्रभार क्षेत्र में समस्त कर्मचारी सात दिवस तक पूरी ईमानदारी के साथ अपनी सेवाएं दे। ग्रामीणों को भोजन सामग्री व शुद्ध जल उपलब्ध कराने के निर्देश भी दिए है। ग्रामीणों को हिदायत भी दी गई है कि वह पानी का उपयोग गर्म करके ही करे।
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