लॉकडाउन में जब लोग घर बैठे थे, तब शहर के कुछ ऐसे भी युवा हैं जो नवाचार कर रहे थे। इसके लिए कुछ ने अपनी जॉब छोड़ी तो कुछ कॉलेज से पास आउट होने के बाद सीधे नवाचार करने में लग गए। परिणाम यह हुआ कि कोरोना काल में ये युवा न केवल आत्मनिर्भर बन गए बल्कि उनके नवाचार का फायदा आम लोगों को भी मिल रहा है। आज हम आपको शहर के ऐसे ही युवाओं की कहानियां बताने जा रहे हैं। प्रस्तुत है रिपोर्ट...
कागज की पेंसिल बनाते थे, अब कोविड-19 सैंपल कलेक्शन चेंबर बना दिए
फलित गोयल, आरजेआईटी से एमटेक कर रहे महज 23 साल के फलित गोयल ने पर्यावरण बचाने के उद्देश्य से 2 साल पहले अखबारी कागज से पेंसिल बनाने की शुरुआत की थी। अब वे हर महीने 30 हजार पेंसिल बना रहे हैं और इसकी मशीन भी घर पर ही बनाई। मार्च-2020 में कोरोना आया तो फलित ने दो नवाचार और किए। बकौल फलित, कोरोना के सैंपल लेने वाले डॉक्टर या संक्रमित होने की खबरें पढ़कर ऐसा कलेक्शन चेंबर बनाने का आइडिया आया, जिससे डॉक्टर सुरक्षित रहे। घर में एल्युमिनियम और ग्लास का उपयोग कर पहला चेंबर बनाया। चेंबर ऐसा है कि सैंपल लेने वाले व्यक्ति के केवल हाथ ही बाहर निकलते हैं। कीमत 55 हजार रुपए है और बीएसएफ अकादमी सहित शहर में 4 जगह यह कलेक्शन चेंबर लगे हैं।
22 साल के दिव्यांश, इनके प्लांट में हर महीने बन रहे 70 हजार एन-95 मास्क
दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीकॉम ऑनर्स करने वाले शहर के दिव्यांश अग्रवाल वर्तमान में चार्टर फाइनेंशियल एनालिस्ट प्रोग्राम कर रहे हैं। लेकिन कोरोनाकाल में लोगों को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने अपने दोस्त के साथ एन-95 मास्क बनाने का प्लांट ग्वालियर में लगा दिया। तकरीबन 25 लाख रुपए से लगे इस प्लांट के लिए राशि बतौर लोन पिता से ली और मास्क की गुणवत्ता परखने के लिए टेस्ट डीआरडीई ग्वालियर से करवाया गया। यानी मास्क डीआरडीई टेस्टेड है। दिव्यांश बताते हैं कि यह प्लांट मई में शुरू हुआ था और पहले महीने 30 हजार मास्क का उत्पादन हुआ। अब हर महीने 70 हजार मास्क का उत्पादन हो रहा है। एक मास्क की कीमत 40 रुपए है। तानसेन नगर में लगे इस प्लांट के जरिए वे शहर के 17 से 20 लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करवा रहे हैं।
एमबीए करने के बाद 7 लाख पैकेज वाली जॉब की, अब उगा रहे हैं नेपियर घास
यह कहानी है सूर्या रोशनी जैसी कंपनी से रॉ मटेरियल हेड की जॉब छोड़ने वाले राहुल कुलश्रेष्ठ की। आत्मनिर्भर बनने के लिए 7 लाख रुपए की जॉब छोड़कर सॉइल हेल्थ मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ से जुड़े, लेकिन कोरोनाकाल में सब ठप पड़ गया। राहुल ने नवाचार जारी रखा और नेपियर (विदेशी) घास उगाने के लिए शहर के बाहर 6 एकड़ की जमीन लीज पर ली। एक एकड़ में घास उगाने का खर्च 1 लाख रुपए आया, यानी 6 एकड़ का खर्च 6 लाख रुपए। इसके लिए उन्होंने एक पार्टनर बनाया और नेपियर घास खरीदी। यह घास 12 महीने उगती है और हरी रहती है। जमीन में इसकी स्टेम लगाई जाती हैं जो 3 महीने में बड़ी हो जाती हैं। यह घास पशुओं के उस चारे का विकल्प है जब उन्हें हरा चारा खाने को नहीं मिलता है। हरियाणा के लोग पशुओं के लिए नेपियर घास ही लेते हैं।
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