देश के सभी बेघर परिवारों को 2022 तक पक्का आवास मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार ने अहम कदम उठाया है। इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए देश के 6 राज्यों में कम वजन वाले घरों की परियोजना शुरू की।
इनमें मप्र का इंदौर शहर भी शामिल हैं, जहां प्रोजेक्ट पर 128 करोड़ रु. खर्च होंगे। ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज के तहत यह शुरुअात की गई। मोदी ने इंदौर में उपयोग होने वाली रीफैब्रिकेटेड सैडविच पैनल तकनीक को समझाते हुए बताया कि इसमें ईंट-गारा (गीला मटेरियल) से दीवारें नहीं बनेंगी।
कम लागत में और कम समय में गुणवत्तापूर्ण घर बनेंगे। इस परियोजना में त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड,तमिलनाडु में गरीब लोगों को सरकार सस्ते, भूकंप रोधी और मजबूत मकान मुहैया कराएगी। केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर यह काम करेंगी। शेष | पेज 8 पर
कार्यक्रम में मोदी ने कहा, ‘गरीब और मध्यमवर्ग के लोगों को घर मुहैया कराना सरकार की प्राथमिकता बताया। ये 6 लाइट हाउस परियाेजनाएं देश को आवास निर्माण की दिशा में नई राह दिखाएंगी।’ उन्होंने इंजीनियर, विद्यार्थियों और प्रोफेसरों से अपील की कि वे इन जगहों पर जाएं। इन परियोजनाओं का अध्ययन करें। देखें कि देश के लिए ये सही है या इनमें सुधार की गुंजाइश है।
मोदी ने अपने संबोधन में एक कविता भी पढ़ी
आसमान में सिर उठाकर
घने बादलों को चीरकर
रोशनी का संकल्प लें
अभी तो सूरज उगा है।
दृढ़ निश्चय के साथ चलकर
हर मुश्किल को पार कर
घोर अंधेरे को मिटाने
अभी तो सूरज उगा है
विश्वास की लौ जलाकर
विकास का दीपक लेकर
सपनों को साकार करने
अभी तो सूरज उगा है
न अपना न पराया
न मेरा न तेरा
सबका तेज बनकर
अभी तो सूरज उगा है
आग को समेटते
प्रकाश का बिखेरता
चलता और चलाता
अभी तो सूरज उगा है।
ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज... 54 तकनीकों को 6 समूह में बांटा
लाइट हाउसिंग प्रोजेक्ट्स के लिए ‘ग्लोबल हाउसिंग टेक्नोलॉजी चैलेंज’ के तहत 54 तकनीकों को 6 समूह में बांटा गया। प्रतिनिधि के रूप में हर समूह की एक तकनीक का इस्तेमाल छह अलग-अलग शहरों में किया जा रहा है। इन 6 तकनीकों से भारत के 6 शहरों में 1-1 हजार मकान बनाए जाएंगे। इन घरों के निर्माण में फ्रांस, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों की आधुनिक और अग्रणी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाएगा।
छह शहरों में छह देशों की तकनीक से बनेंगे घर
राजकोट... बुर्ज खलीफा जैसी तकनीक
मोनोलिथिक कंक्रीट कंस्ट्रक्शन टनल फॉर्म वर्क। यह फ्रांस की तकनीक है। दुबई का बुर्ज खलीफा इसी से बना है। इसमें फैक्टरी में बनी शटरिंग सेे एक साथ दीवार, छतें व फर्श बनाई जाती हैं।
चेन्नई : प्रीकास्ट कंक्रीट कंस्ट्रक्शन सिस्टम
यह फिनलैंड और अमेरिका में इस्तेमाल होती है। बीम, कॉलम और दीवारों के पैनल जैसे अलग-अलग हिस्से पहले कास्टिंग यार्ड मेें तैयार किए जाते हैं। फिर निर्माण स्थल पर ले जाकर उन्हें फिट किया जाता है।
अगरतला : लाइटगेज स्टील इनफिल पैनल
यह मूल रूप से न्यूजीलैंड की तकनीक है। इसमें मजबूत लोहे के गार्डर, बीम, कॉलम से फ्रेम बनेगा। दीवारें अपेक्षाकृत पतली स्टील की चादर से बनेंगी। आपदा के लिए एेसे घर बेहद लचीले होते हैं।
इंदौर : रीफैब्रिकेटेड सैंडविच पैनल सिस्टम
इसमें दीवारों को निर्माण स्थल पर ईंट व गारे के बजाय फैक्टरी में फाइबर शीट के दोनों तरफ सीमेंट की परत चढ़ाकर तैयार किया जाता है। शीट को फ्रेम में फिट कर दिया जाता है। तराई की जरूरत नहीं।
रांची : 3डी वॉल्यूमैट्रिक प्रीकास्ट कंक्रीट
जर्मन तकनीक। इसमें कास्टिंग यार्ड या फैक्टरी में पहले कमरे, बाथरूम, किचन या कोई भी निर्माण कर लिया जाता है। फिर उन्हें निर्माण स्थल पर ले जाकर केवल ब्लॉक-दर-ब्लॉक जोड़ दिया जाता है।
लखनऊ : पीवीसी स्टे इन प्लेस फॉर्मवर्क
कनाडा की तकनीक। इसमें प्री-फिनिश्ड टाइल लगी दीवारों का इस्तेमाल होगा, जो अंदर से खोखली होंगी। फैक्टरी में तैयार होने के बाद इन्हें मकान के फ्रेम में फिट कर खोखले स्थान में कंक्रीट भर दी जाती है।
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