लगातार घटती ब्याज दरों से कर्मचारियों का जीपीएफ (सामान्य भविष्य निधि) में राशि जमा कराने से रुझान कम हो रहा है। प्रदेश के 2 लाख 28 हजार कर्मचारियों की जीपीएफ में जमा पूंजी में 2019-2020 में 1172 करोड़ रुपए की कमी आई, जबकि 2018-19 में 162 करोड़ रुपए ही निकाले गए थे। यानी सीधे-सीधे इस साल कर्मचारियों द्वारा 1010 करोड़ रुपए ज्यादा निकाले गए। दअसल, सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमारी जुलाई से सितंबर की ब्याज दर 7.1 फीसदी घोषित की है जो अब तक की सबसे न्यूनतम है। ब्याज में कमी से प्रत्येक कर्मचारी को बीते साल की तुलना में 5 हजार से 25 हजार रुपए तक का नुकसान हो रहा है। कोरोना महामारी के बीते चार माह के दौरान जीपीएफ में से 850 करोड़ रुपए निकाले गए, जिसका कर्मचारियों ने फायदे के सौदे के रूप में सोने की खरीदी में उपयोग किया। कोविड-19 से आर्थिक तंगी होने से कर्मचारियों का डीए, एरियर और इंक्रीमेंट पर पिछले चार महीने से रोक लगी हुई है। इधर, जीपीएफ में जमा राशि पर ब्याज की दर घटने से कर्मचारियों ने जमा पूंजी को निकालकर अन्य फायदे के विकल्पों में लगाना शुरू कर दिया है।
साथ ही जीपीएफ में हर महीने कटौती भी कम कर दी है। सरकार भी लगातार जीपीएफ में से निकल रही राशि से चिंतित है, उसे यह भी अंदेशा है कि जमा पूंजी में इसी तरह से राशि निकलने का सिलसिला रहा तो खजाने पर विपरीत असर पड़ेगा। दरअसल जीपीएफ में जमा राशि का उपयोग जन कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करती है। वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा मानते हैं कि ब्याज की दरों में कमी आई है, लेकिन उनका कहना है कि वर्तमान में जो परिस्थितयां वे किसी से छिपी नहीं है।
12 फीसदी राशि होती है जमा
शासकीय सेवकों को हर महीने वेतन का 12 फीसदी जीपीएफ में कटौती करवाना बाध्य है। इसके ऊपर वे वेतन की 80 से 90 फीसदी राशि भी सामान्य भविष्य निधि में जमा करवा सकते हैं। बीते छह सालों में पड़ताल में यह बात सामने आई कि ब्याज दरें घटने से कर्मचारियों ने जीपीएफ में राशि जमा करना कम कर दिया और जो जमा पूंजी थी उसे अन्य फायदे वाले विकल्पों में लगाना शुरू कर दिया।
ऐसे कम हो रही राशि
- वर्ष जमा राशि
- 2017-2018 14493 करोड़
- 2018-2019 14431 करोड़
- 2019-2020 13259 करोड़
बैंकों से ज्यादा रही है जीपीएफ की ब्याज दरें
कर्मचारियों की जीपीएफ में जमा पूंजी पर ब्याज दरें बैंकों से ज्यादा रही हैं। 1983-84 में तो 9.5 प्रतिशत रही जो 2020-21 में घटकर 7.1 प्रतिशत रह गई। 2012-13 में ब्याज दर 8.8 प्रतिशत थी जो लगातार 2016-17 तक 8 फीसदी रही। 2019-2020 में 7.9 प्रतिशत रही जो घटकर जुलाई से सितंबर के बीच 7.1 फीसदी रह गई है।
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