मुरैना गांव में चल रही रामलीला में गुरुवार की रात भगवान श्रीराम जंगल में घूमते हुए शबरी की कुटिया में पहुंच गए। भगवान को कुटिया में देख शबरी भाव विभोर होकर उनकी सेवा के लिए आतुर दिखाई दी। भगवान के भोजन के लिए कुटिया में कुछ नहीं मिला तो बेर तोड़कर भगवान के समक्ष रख दिए। लेकिन भगवान के मुख में खट्टा बेर न आ जाए इसके लिए एक-एक बेर चखकर भगवान को खिलाना शुरू कर दिया। जो बेर मीठा था वह भगवान को दिया और खट्टे फेंक दिए। श्रीराम भी शबरी की श्रद्धा देखकर भाव पूर्ण झूठे बेर खाते रहे। कथा के दौरान श्रीराम व शबरी संवाद को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हुए।
शवरी ने कहा कि हे महाराज। आप किष्किंधा पधारें। वहां आपका परम भक्त सुग्रीव है। वह अपने भाई बाली से बहुत त्रस्त है। आप उसके ऊपर कृपा करें तथा उससे मित्रता करें। शबरी के कहने के अनुसार श्री राम सुग्रीव से मिलने किष्किंधा जा रहे थे। सुग्रीव ने रामजी को आते हुये देखकर हनुमानजी से कहा कि हे हनुमान जी आप ब्राह्मण का रूप बनाकर उनके पास जाओ और पहचान करना कि ये दोनों भाई कौन हैं।
हनुमानजी विप्र रूप धारण करके श्रीराम के पास गए और प्रणाम करके भगवान से उनका परिचय पूछने लगे। तब श्री राम ने कहा कि हे भाई हम अयोध्या नरेश दशरथ जी के पुत्र हैं। मेरा नाम राम है और ये मेरे छोटे भाई लक्ष्मण जी है। हम पिताजी का वचन पूरा करने के लिए यहां वन में आये हैं। हमारे साथ में हमारी धर्म पत्नी सीताजी थीं। उनका किसी राक्षस ने हरण कर लिया है। हम उन्हीं को खोज रहे हैं। इसके बाद श्रीराम ने सुग्रीव से पूछा कि हे मित्र तुम अपना राज्य छोड़कर यहां जंगल में क्यों रह रहे हो। तब सुग्रीब ने राम जी से कहा कि हे नाथ मैं और बाली दोनों सगे भाई हैं।
हम दोनों में परम स्नेह था। लेकिन किष्किंधा का राजा बनने पर बाली के मन में मेरे प्रति द्वेष हुआ और उसने मेरी पत्नी को छुड़ा लिया और मुझे मारने को मेरे पीछे भाग रहा है। तब रामजी ने सुग्रीव से कहा कि हे सखा अब निर्भीकता से रहिये। मैं बाली को एक ही बाण से मार दूंगा। सुग्रीब ने सात वृक्ष दिखाए और कहा कि हे राम जी जो इन सातों वृक्षों को एक बाण से गिरा देगा उसी के द्वारा बाली की मृत्यु होगी।
राम जी ने एक ही बाण से उन सात वृक्षों को गिरा दिया। राम जी ने बाली से युद्ध के लिए सुग्रीव को भेजा। बाली ने उसको परास्त कर दिया। राम जी ने पहचान के लिए सुग्रीव के गले में फूलों की माला पहना दी और दुबारा युद्ध के लिये भेजा। जब बाली को सुग्रीव परास्त नहीं कर पाया, तब एक वृक्ष की ओट से श्रीराम ने बाली का वध कर दिया। बाली ने अपने पुत्र अंगद को रामजी को सौंप दिया और शरीर छोड़ दिया।
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