भगवानपुरा विकासखंड के बन्हेर निवासी रामप्रसाद (35) बताते हैं 22 मार्च को गुजरात से बन्हेर गांव निकले। यहां आकर कुछ दिन गेहूं कटाई की। सामान खरीदा। अब कोई काम नहीं है। खाना खाकर दिनभर घर बैठो। उन्होंने कहा लॉकडाउन में कोई काम नहीं है।
कम मजदूरी व पर्याप्त काम नहीं मिलने से गुजरात जाते हैं। अहमदाबाद में मल्टी-बिल्डिंग निर्माण का काम करते थे। दोनों पति-पत्नी को 400-400 रुपए रोज मजदूरी मिल रही थी। दो बच्चे दादा के पास रहकर पढ़ाई करते हैं। कोरोना के संक्रमण में लौटना पड़ा। अब ऐसी विपदा नहीं आई तो ही बाहर के प्रदेश जाएंगे। अन्यथा यहां मकान निर्माण, खेती व मजदूरी कर परिवार चलाएंगे।
जिला पंचायत सीईओ डीएस रणदा ने दावा किया है कि जिले में मजदूरों को मनरेगा के अंतर्गत काम दिया जा रहा है। इसमें गड्ढे खोदना, पीएम आवास आदि में काम मिल रहा है, लेकिन हकीकत में मजदूरों को कोई काम नहीं मिल रहा है। लाॅकडाउन में लोग घरों में कैद है। महाराष्ट्र से लौटे भगवानपुरा क्षेत्र के मजदूर गुमानसिंह बारेला, छीतर वास्कले ने बताया कि हमें मजदूरी नहीं मिली है। घर पर ही आराम कर रहे हैं।
गुजरात से 32 खाली वाहन लौटे, ढाई लाख का नुकसान
गुजरात में फंसे मजदूरों के लेने के लिए 26 अप्रैल को रात में 32 बसें गुजरात भेजी थी। सीमा पिटोल में वाहन रोके गए। मजदूर नहीं आए। क्योंकि गुजरात सरकार ने उन्हें अनुमति नहीं दी। 29 अप्रैल को खाली वाहन लौटे। इसमें एक वाहन का 10 से 15 हजार रुपए खर्च हुआ। इस हिसाब से ढाई लाख रुपए से ज्यादा का सरकारी राशि का नुकसान हुआ। विधायक रवि जोशी ने कहा कि गुजरात व अन्य राज्यों में पहले समन्वय के बाद वाहन भेजना था। अब गलती सुधारते हुए संबंधित राज्यों के प्रमुख सचिवों से चर्चा कर मजदूरों को जल्दी खरगोन लाया जाए।
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